सत्य की परछाईयां मेरे जीवन के कुछ प्रतिबिम्ब हैं. जैसे जैसे जीवन समय की लहरों पर आगे बढ़ता है, वैसे ही सत्य परछाई बनकर जीवन का अनुसरण करता रहता है. सत्य कभी नष्ट नहीं होता, सत्य की परछाई धुंधली पड़ सकती है. मानव की स्मरण शक्ति बीते हुए जीवन की कुछ घटनाओं को सदा संजोकर रखती है. धीरे धीरे स्मरण शक्ति भी धीमी पढ़ती जाती है मगर सत्य कभी नष्ट नहीं होता. ये बात भी माननीय है कि कुछ सत्य ऐसे होते हैं कि उनके अस्तित्व की आभा कभी कम नहीं होती. कभी कभी वर्तमान और भविष्य की कोख से ऐसी चकाचौंध प्रकट होती है कि सत्य के अस्तित्व की आभा परछाई में परिवर्तित हो जाती है. ऐसी चकाचौंध में कई व्यक्तित्व चमकने लगते हैं तो कई अपने भूत को भूलकर उस चकाचौंध में समा जाते हैं. ऐसा व्यक्तिव जो अपने भूत को कभी नहीं भूल पाता और वर्तमान की चकाचौंध में भी अपनी राह नहीं भूलता, वो ही कुछ अविस्मरणीय कर जाता है.
